Thursday, December 30, 2010

आँखें

समझ में मेरी कुछ भी आया नहीं
बताऊ किसको क्या कुछ छुपाया नहीं

व्यस्तता

हर किसी को अपने-अपने से काम है 
    कोई तो सोचे कहा छूट गई मुस्कान है

अर्श से फर्श तक

अगर हम जानते यह की 
अर्श से फर्श पर उतरना 
तो कभी न गिरते 
सम्भल ही जाते,चोट न खाते
 अब गिरे है तो 
चोट भी लगेगी,दर्द भी होगा 
लेकिन 
उसे सहना होगा
और 
 किसी से कुछ न कहना होगा

अकेलापन

  मैं अपनी बात कुछ यूँ कहती गई,
कि किसी को कोई तकलीफ न हो,
समझ पाई न खुद अपने आपको,
     बस यूँ  ही अकेले  चलती चली गई....

Wednesday, December 29, 2010

आँसू

                                            आँख से बहे आँसू  सब को नज़र आते है ......
                                            पर जो नज़र नहीं आते वो दर्दनाक हो जाते है ......