Friday, February 25, 2011

औरत


एक औरत के दिल की गहराई कोई माप नहीं सकता 
उसमें कितनी है समाई कोई भाप नहीं सकता ..... 

पढ़ाई

पढ़-पढ़ कर दिमाग का बल्ब फ्यूज़ हो जायेगा
                      और चश्मा ठुक जायेगा
क्यों न उतना ही पढ़ा जाये जितना समझ में आ जाए
                      पूरे साल पढना है जरुरी 
वरना किताब नहीं हो पाती है पूरी
                      जो बच्चे पढाई के समय करते है ऐश 
वो नहीं कर पाते ज़िन्दगी को कभी कैश
                      जो इस असलियत को जान जायेगा
अंत में वही सफल हो पायेगा  

Thursday, February 24, 2011

गणिका

एक गरीब था परिवार 
वही था उसका पूरा संसार 
न खाने को कुछ था न रहने को
न अपना कुछ कहने को 

एक थी लड़की एक माँ बाप 
जाने कौन सा हो गया पाप 
जैसे तैसे बड़ी हो पाई
लोगो की नज़र में आई 

बाप की मृत्यु हो गई ऐसे
मोक्ष मिल गया उसको जैसे 
माँ भी उसी लाइन में आई 
मृत्यु सामने खड़ी पाई 

फिर ......
फिर क्या होना था 
होना वही था जो होना था 

छोटी थी खाने की चिंता 
बढ़ी हुई इज्ज़त की चिंता 
कहाँ जाऊँ क्यों जाऊँ
आखिर खुद को कैसे बचाऊ 

सभी कोशिशे थी बेकार....

इधर गिरी उधर पड़ी 
जाने कैसे पहुँच गई 

वहाँ .......

जहाँ सूरज की किरणे भी 
आने से पहले सौ बार सोचती है
जहाँ अपनी मर्ज़ी से दो घडी 
साँस लेना भी पाप से कम नहीं   

जहाँ एक-एक पल 
सदी से कम नहीं होता  
वहाँ मेरी असमद लूटी
एक बार नहीं कई बार लूटी 

वहाँ कोई कृष्ण न था....

क्या दोष था मेरा 
क्या गुनाह किया
कुछ अरमान थे मेरे
 कुछ इच्छाएँ थी 

ना जाने कौन सी कोठरी में
जा सब गिरफ़्तार हुई 
क्या मेरी यही नियति थी 
क्या मेरी यही नियति थी 

क्यों मुझे किसी ने थामा नहीं 
क्यों मुझे किसी ने रोका नहीं 
क्या किसी के लिए 
मैं... कुछ भी नहीं

तो क्यों जीऊ  
पल-पल मर कर 
क्या गुनाह किया
सोचू थम कर 

जहाँ जीना मुश्किल है
मरना है आसान
तेरे इस संसार का 
क्या करूँ भगवन 

क्या करूँ बता 
क्या करूँ बता.... 





Thursday, February 17, 2011

इच्छा


.

                                हर बार कुछ नया करना चाहती हूँ
                                                                                          
                                                              जिन्दगी को नए रंगों से भरना चाहती हूँ
                                                                                         
                                                              बस यही सोच कर रुक जाते है हाथ मेरे 

                                                              किसी और कि दुनिया न बेरंग हो जाये