Tuesday, March 1, 2011

कौन कब तक ....

जिंदगी में बहुत से लोग आए
पर ...........
कौन कब तक रुका 
कह पाना कठिन था 
कोई किसी मोड़ पर 
तो ............
कोई किसी मोड़ पर
छूटता चला गया 
साथ निभाने वाला 
कही कोई न मिला

जिंदगी में बहुत से लोग आए
पर ...........
कौन कब तक रुका 
कह पाना कठिन था 
बहुत सोचा समझा और जाना 
पर हर एक अंजाना मिला
इस भरे बाज़ार में 
मेरा खरीदार ना मिला 

जिंदगी में बहुत से लोग आए 
पर ....
कौन कब तक रुका 
कह पाना कठिन था 
ये मोड़ आसन ना थे जानते थे हम 
सोचा था किसी का हाथ थाम  
बढ़ चलेंगे आगे लेकिन 
जहाँ देखा वहाँ अँधेरा मिला 

जिंदगी में बहुत से लोग आए 
पर ....
कौन कब तक रुका 
कह पाना कठिन था
अब तो आदत सी हो गई है 
अकेले चलने की
अगर कोई आएगा 
तो क्या समझ मुझे वो पायेगा.......... 


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